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पानी रे पानी

gopal agarwal
gopal agarwal
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दूध की नदियाँ व सोने की चिड़िया वाला भारत आज पीने के पानी को जूझ रहा है। यह कोई दैवीय आपदा नहीं है। इसे शासकों का कुप्रबन्ध कह सकते हैं जिसमें भू-माफियाओं ने देश भर में तालाबों को कब्जा कर रिचार्ज प्रक्रिया को रोका है। वोट के खेल में बिजली मुफत होने से आवश्यकता से अधिक पानी बहाया जा रहा है।
घरों, फैक्ट्रीयों व दुकानों पर सबमर्सिवल लगाकर अकारण पानी को बहाया जाता है। एैसे नागरिकों को यह समझाना आवश्यक है कि पानी के भंडार की सीमा है तथा भावी पीडियों के लिए भी पानी संचित छोड़ा जाना चाहिए।
मौहल्ले में चल रही डेयरियों में गोबर बहाने के लिए पानी का प्रयोग हो रहा है। इसके कारण फैली गन्दगी से मौहल्लेवासी डेयरी हटाने की मांग करने लगे है। मौहल्लों से डेयरी नहीं गोबर उठवाने की सोच रहनी चाहिए। ओटो सेक्टर में वाशिंग लाइनों से पानी की बेहिसाब बर्बादी हो रही हैं।
महाराष्ट्र में कई जिलों में पीने के पानी का संकट हो गया है। स्थिति की भयानकता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि सूखते हुए होंठ व गले के लिए 300 कि.मी. दूर रेल द्वारा पानी पहुँचाना पड़ा। इससे सबक लेना चाहिए। अभी जहाँ पानी उपलब्ध है वहाँ जल दोहन की निरन्तरता से महाराष्ट्र के आतुर जैसे हालात पैदा हो सकते हैं। 2014 में मालद्वीप पर आए संकट के समय हवाई व समुद्री मार्ग द्वारा भारत से पीने का पानी भेजना पड़ा था। हमे महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त क्षेत्रों के भाइयों के प्रति सहानुभूति है। कल यह स्थिति हमारे साथ न हो इस पर स्कूलों में वाद-विवाद हो, महिलाएँ किट्टियों में चर्चा करें, संगठन अपनी मीटिंग के ऐजेन्डे में यह विषय अवश्य डालें।
सरकरों से भी मांग है कि खेती, पीने व घरेलू इस्तेमाल के लिए भले ही मुफत पानी दें, सिचांई के लिए भी बिजली मुफत दें, परन्तु जरूरत की सीमा के अन्दर ही यह सब हो। आवश्यकता से अधिक दोहन पर कानून बनाकर तथा मूल्य लगाकर रोक के प्रयास करने चाहिए।

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