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भविष्य की योजनाएं
पेरिस में जलवायु संकट पर राष्ट्र प्रमुखों ने चिन्ता व्यक्त की है। जानकारों का कहना है कि आज जो बच्चे हैं उनकी तीसरी पीढ़ी को सांस लेने में कठिनाई होगी। दिल्ली में प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता जा रहा है।
आज में जीने व प्रकृति का निज स्वार्थ में दोहन की लालसा इस मुकाम तक पहुंचा रही है। योजना बनाने वालों ने 50 वर्ष 100 वर्ष आगे के वैकल्पिक प्रबन्धों के विषय में ठोस कार्य नहीं किया।
बिजली के लिए सोलर पावर पर अधिक कार्य होना चाहिए। देश के दक्षिणी भाग में सूर्य किरणों की उपलब्धता अधिक है। माल ढुलाई के लिए रेल परिवहन को दुरस्त किया जाय तथा डीजल के स्थान पर विद्युत चालित इंजनों को प्रयोग में लाने का समयवद्ध कार्यक्रम चले। लम्बी दूरी के माल यातायात के स्थान पर उत्पादों को क्षेत्रीय आधार पर उत्पादित करने के प्रयास रहें। इस समय दवा बनाने की अधिकांश फैक्ट्रीयां देश के उत्तरी सिरे उत्तराखण्ड व हिमाचल में है। वहां की बनी दवा केरल तक भेजी जा रही हैं जबकि दवा बनाते में कच्चे माल के रूप में स्थानीय अवयवों की आवश्यकता नहीं होती जिसके लिए उत्तरी छोर पर ही फैक्ट्री लगे। आयुवैद में आवश्य प्राकृतिक जड़ी बुटियों की आवश्यकता होती है परन्तु इनकी ढुलाई तैयार माल के बरक्स बहुत कम होती हैं। ये फैक्ट्रीयां अन्य राज्यों में भी लग सकती है किन्तु सरकार ने उत्पादन शुल्क की छूट का लाभ उपरोक्त दोनों राज्यों को दे रखा है। छूट का लाभ बंद हो अथवा सभी राज्यों को मिले।
कुल मिलाकर प्रत्येक वस्तु व सेवा पर नीति बना कर भविष्य के अच्छे संचालन की व्यवस्था सोची जाय।
दिल्ली में कारों के 15 दिन के यातायात का नियम बनाया गया है। अच्छा होता कि सरकार कारों के उत्पादन को सीमित कर 15 से 30 सीटर छोटी बसों के उत्पादन को प्रोत्साहित करे। जी.डी.पी. बढ़ाने के लिए वाहन क्षेत्र के बजाय कृषि क्षेत्र पर ध्यान केन्द्रित किया जाय। सर्वाधिक रोजगार कृषि में हैं। उसके बाद सूक्ष्म, लघु मध्यम उद्यम व वाणिज्य में हैं। कृषि व लघु उद्यम आधारित जी.डी.पी. बढ़ने के साथ अधिक रोजगार सृजन होगें। नई आवास नीति में पचास वर्ष बाद के जनसंख्या दबाव को ध्यान में रखना होगा।
भूगर्भ पानी का दोहन जिस रफतार से हो रहा है उससे तो पचास वर्ष बाद नहाने के लिए भी पानी खरीदना पड़ेगा।
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