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मेरा जीवन मेरी सोच

gopal agarwal
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मेरा जीवन मेरी सोच
असफल जीवन सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है। आपने सफलता के अनेक द्वष्टांत देखे होंगे परन्तु उनका अनुशरण की कितनी सम्भावना बनेगी इसके विषय में कुछ नहीं कहा जा सकता। इसके विपरित असफल जीवन की त्रृटियां देखकर अपने अंदर समाहित कमजोरीयों को दूर कर लेने की समझ से प्रगतिशील मार्ग स्वंय स्वागत करता दीखेगा।
भ्रमवश सत्ता या पद को सफलता का द्योतक माना जाय तब हम महात्मा गांधी को क्या मानेंगे? इस परिभाषा में तो बापू असफल व्यक्ति होने चाहिए परन्तु बिन सत्ता दिल में बस जाने वाले से अधिक सफल जीवन की परिभाषा और क्या हो सकती है? डा. राममनोहर लोहिया के निधन के बाद जितने वर्ष बीत रहे है। डा. लोहिया उतने ही सफल व ताजा विचारों के जनक दिखाई दे रहे हैं। डा. लोहिया स्वंय सत्ता से सदैव दूर रहे। लोकनायक जयप्रकाश नरायण को संसद के वृहद् बहुमत ने सजे थाल में परोस कर सत्ता में आने का निमन्त्रण दिया था परन्तु उनका व्यक्तित्व सत्ता के तख्त पर रखे सिंहासन से ऊंचा है। उन्होंने विनम्रता से सत्ता को अस्वीकार किया। आचार्य नरेंद्र देव को संदेश भेजकर पं. जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें उत्तर प्रदेश तत्कालीन प्रान्त के मुख्यमंत्री की शपथ का आग्रह किया तो आचार्य जी ने स्वीकारना तो दूर विधायिका से ही त्यागपत्र दे दिया। इन सभी महान विभूतियों ने सत्ता के दंभ को ललकारा, जनता को जगाया। आने वाली पीढियां भी इन्हें याद रखेंगी।
इसलिए, जागरूक मस्तिष्क के साथीयों, निराशा की भावना न लाओ। बस इतना भर हो कि निठल्ले बैठ कुढने की आदत न हो। आप की सोच ताजा रहनी चाहिए। व्यवस्था का विकल्प सोच सको तो बेहतर, वरना खोट तो पहचान ही सकते हो। हम कल के अच्छे के लिए नारा नही लगायेगें बल्कि उन नीतियों पर सोचेंगे जो अच्छा कल लेकर आ सकें।
नारे लगाने से अच्छे दिन नहीं आते। इसके लिए भारत का भूगोल व अर्थशास्त्र समझना होगा जिसके लिए प्रकाट् पांडित्य का होना आवश्यक नहीं है। प्रत्येक परिवार पढ़ा या अनपढ़ा, अमीर या गरीब या यूं कहें कि स्कूल का द्वार भी न देख पाने वाली महिला भी बेहद सुघढ़ अर्थशास्त्री होती है। वह अपने पति की जितनी भी आमदनी हो उसमें घर चला कर दिखा देती है। इसलिए मैं पश्चिम देशों के विद्वान अर्थशास्त्रीयों के बजाय महिलाओं के प्राकृतिक अर्थशास्त्र को नमन करता हूं। काश हमारे नेता भी इस तथ्य को समझ पाते। इसलिए विलायती औसत के आंकड़ो से कलाबाजिया खिलाते अर्थशास्त्री के मुकाबले देश की मिट्टी से उपजे अर्थशास्त्र के पन्नो पर उभरते सम्पन्न भारत का चित्र देखता हूं। किसानों के पसीने की बूंदों को उड़ा कर ले जाती हवा की उष्मता से बने बादलों को गरज कर बरसते हुए देखना चाहता हूं। इन सपनों को साकार आपके विचार करेंगे। आप अपने सुझाव रखें। आप की आय पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े, उतने समय मात्र की सक्रियता से भारत सम्पन्नता का अभियान गतिशील हो जायेगा।
मैं फिर कह रहा हूं कि हूटर की कान फोड़ चीखों से गली के छोर पर बैंठे दुर्बलकाय मानव की आह में अधिक झंकार है। इन “आह” को जोड़कर तरगों का सैलाब बना दो फिर बताना कि सफलता किसे कहते है?
मेरा जीवन आपको समर्पित है और आपके सुझाव हमारे राष्ट्र के लोकतन्त्र, न्याय व्यवस्था, अर्थव्यवस्था व प्रशासनिक कौशलता के उत्तम स्वास्थ्य के लिए अमृत समान है।
मेरी शुभकामनाएं आपके उज्जवल भविष्य के लिए हैं।
आपका शुभचिंतक
गोपाल अग्रवाल

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