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सरकारी टोंटी पर लगी पानी लेने की कतार में हुए झगड़े से मौत की खबर दिल्ली से आई। मैं उतना ज्यादा काल्पनिक नहीं हूं जो “अगला विश्वयुद्ध पानी के लिए होगा” जैसे जुमलों पर विश्वास करूं परन्तु सूखी टोंटी पर लगी कतार राज्य व केन्द्र सरकार की प्राथमिकताओं एवं चुनौतियों के चयन पर अवश्य ही प्रश्रन खड़ा कर रही है।
हमारा सोच का ढर्रा अभी उसी तरह है कि गली में बरात आने पर गली के दोनों ओर दीवारों पर कीले ठोंक कर झंडियां लगा नीचे के कूढे के ढेरों पर चूना छिड़क कर ढक दिया जाता है। यह हमारी सोच की विकृति ही है वरना कूढे को साफ करना शादी के कार्यों की प्राथमिकताओं में जोड़ा जाता तो बेहतर होता। उस गन्दगी को स्वंय साफ करने की आवश्यकता भी नहीं होती यदि स्थानीय निकाय को तीन चार स्मरण-पत्र देकर टोका-टाकी की जाय। यद्यपि यह कार्य उनके स्थाई कर्तव्य की सूची में है।
देश के अन्दर अकेल वी.आई.पी. मूवमेंट के खाते हजारों करोड़ का बजट रहता है। पानी, स्वच्छता तथा सीवर जनता की प्राथमिकता आवश्यकता तथा निकायों का प्राथमिक कर्तव्य है। परन्तु, देश में कॉस्मेटिक सर्जरी का चलन है। केन्द्र सरकार व दिल्ली प्रदेश सरकार दोनों ही विज्ञापनों की होड़ में सैकड़ों करोड़ खर्च कर रही हैं। नगर निगम में भाजपा व सरकार में “आप” है। दोनों का रूख गैंर जिम्मेदाराना है।
भाषण उछालने के बजाय बदलने की प्रवृति अपनाने का चलन बने, तभी सुधार होगा। बदलने के लिए बहुत काम करने हैं। पानी समस्या की तरह ही दिल्ली में लाखों परिवार हैं जो बांस की खपच्चीयों पर पालीथीन बांध कर अपना आशियाना बनाए हुए हैं। एक नजर उधर भी डाल कर उनके लिए कुछ व्यवस्था की ओर बढ़ें। देश विदेश के मंचों पर भाषणों में ताली पिटवाने से व्यवस्था में सुधार नहीं होगा।
“पानी के लिए युद्ध होगा”इस भाषा को छोड़कर पानी पिलाना मेरा कर्तव्य है, की नीयत पर केन्द्र व दिल्ली सरकार आए तो अच्छा है।
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