Menu
blogid : 4631 postid : 897114

कैलाश प्रकाश बनाम अमर पाल सिंह

gopal agarwal
gopal agarwal
  • 109 Posts
  • 56 Comments

कैलाश प्रकाश बनाम अमर पाल सिंह
एक मार्ग पर एक सांसद के नामकरण को रद्द कर दूसरे सांसद के नाम का पटृ लगाने का प्रयास भारत में पहली बार सुनने में आया। दोनों सांसद मेरठ जनपद से सम्बन्ध रखते थे। श्री अमर पाल सिंह के नाम से ऊपर श्री कैलाश प्रकाश का नाम लगाया जाता, आपत्ति तब भी थी। एक सड़क का नाम उपरोक्त दोनों सांसद सदस्यों के नाम के आगे छोटी बात है। दोनों के नाम से मेरठ या अन्यय स्थानों पर बड़े संस्थान व योजनाएं होनी चाहिए थी। फिर भी, किसी अनाम या बेतुके नाम के स्थान को नई पहचान देनी थी तब नामकरण उचित प्रतीत होता।
आखिर भारतीय जनता पार्टी ऐसी घृर्णित जाति की राजनीति पर क्यों उतरी? यह एक वर्ष में भाजपा के लुढ़कते ग्राफ से कुंठित होकर जाति द्वेष के क्षेत्र में उतरने की रणनीति है या हताशा में अनाप-शनाप हाथ पैर मारने की किंकर्तव्यविमुढ़ता। परन्तु मुंह के बल गिरते ग्राफ के लिए स्वंय भाजपा दोषी है। लोक सभा चुनावों में जन आंकाक्षाओं में इतना उभार दे दिया गया जिनको पूरा करने की क्षमता इनके नेताओं में नहीं थी। जब भी संबोधन 122 करोड़ को किया जायेगा और कार्य पांच हजार के हितों के लिए होगा तब राष्ट्र का ऐसा ही परिदृश्य बनेगा।
यह भी सम्भव है कि जो मा. केन्द्रिय मंत्री कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थीं उनको वास्तविकता का ज्ञान न हो। किन्तु स्थानीय नेता कार्यकर्त्ता इस तथ्य को जानते थे कि पूर्व में मार्ग का नामकरण श्री कैलाश प्रकाश जी के नाम से हो चुका है। श्री कैलाश प्रकाश का नाम मेरठ के विकास से जुड़ा जन-जन की भावनाओं का नाम है। यह जाति के आधार पर न होकर उनके द्वारा किए गये कार्यो के आधार पर है। श्री अमर पाल सिंह जी की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। परन्तु, जातिगत द्वेष अथवा जाति वोटों को प्रभावित करना भाजपा की रणनीति में है तो यह राजनीति का निम्नतम बिंदु होगा जो राजनीति जैसे पवित्र शब्द के लिए अभिशाप है। राजनीति भूमंडलीय संबधों की सौहाद्रता एवं विकास को दिशा देकर जीवन स्तर में निरन्तर सुधार पैदा करने की नीतियों की अवधारणा है। इसे जाति धर्म व द्वेष में भिगोकर गन्दा करना कुचेष्टा होगी।
जहॉ तक सहानुभूति व वोट लपकने की बात है नामों से कुछ लाभ मिला हो ऐसा देखा नहीं गया। यद्यपि भाजपा ने राष्ट्र के महान नेताओं पर अपने अंगवस्त्र लपेटने की नयी युक्ति निकाली है। गॉधी, लोहिया व जयप्रकाश आदि राष्ट्र के पुरखे होने के नाते सभी के पुरखे हैं। नेता जी सुभाष चन्द्र बोस व शहीद-ए-आजम भगत सिंह जैसे महान पुरूषों ने सदैव समाजवादी समाज की स्थापना के लिए राजनीति की। इन लोगों ने धर्म जाति के विषय में सोचना तो दूर ऐसी बातों को हमेशा पाप की संख्या दी। ऐसे सभी नेताओं ने मानव जीवन के हित में सोचा व किया। राजा महेन्द्र प्रताप सिंह हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रतीक थे। उनकी निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री मुस्लिम समुदाय के थे। परन्तु अलीगढ़ में भाजपा ने इन्हें हिन्दू परिषद के लेप से रंग कर तनाव पैदा करना चाहा। महामना पं. मदन मोहन मालवीय हिन्दू संप्रदाय वादियों को जबरदस्त फटकार लगाते कहते थे कि सात कदम चलने वाला मित्र बन जाता है, हिन्दू मुसलमानों तो सात सौ से अधिक वर्षो से भारत में साथ चल रहे हैं। सरदार पटेल ने महात्मा गांधी की हत्या से आहात होकर राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ पर प्रतिबन्ध लगाया। इन सब को भाजपा ने अपने कुनबे का दिखा दिया। राष्ट्र कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर का झुकाव डा. राममनोहर लोहिया की तरफ था। उनके नाम से बिहार में जातिवादी कार्ड खेलने की कोशिश हो रही है। भाजपा महान व्यक्तियों को सिद्धान्तिक रूप से अंगीकृत करे तो प्रसन्नता होगी उनके आदर्शों का पालन करे क्योंकि उपरोक्त सभी महान व्यक्तिव संप्रदायिक राजनीति नहीं करते थे। भाजपा उनसे कुछ सीख सकी तो देश में शान्ती बनेगी। साथ ही भाजपा को जान लेना चाहिए कि खाली फोटो टांगने से दुकानें नहीं चलती। दुकानों में सौदा भी होना चाहिए। भाजपा ने क्या सोच कर वैश्य बनाम क्षत्रिय का कार्ड खेला है। वैश्य तो रूष्ट हैं, ही व्यापार में हो रही फजीयत की नीतियों से उनके व्यापार पर खतरा है तो क्षत्रिय के मान सम्मान की भी नहीं सोची। श्री अमर पाल सिंह जी का नाम किसी मार्ग पर नहीं केन्द्र सरकार की बड़ी योजना को मेरठ में स्थापित कर उसे उसका नामकरण करते तो सभी को लाभ मिलता तथा दिवगंत नेताओं के कार्यों को प्रणाम करने का अवसर मिलता। भाजपा आत्ममुग्धता में न रहे कि वैश्य समाज उसका बंधुआ है। वैश्य समाज विदेशी पूंजी से होने वाले व्यापार विस्थापन से पहले ही दुखी है। अब उन्हें कचोटा जा रहा है। उधर सदा सम्मान के लिए संघर्ष करने वाले क्षत्री भी हताहत हैं। उन्हें बुला कर मजाक क्यों बनाया जा रहा है? अच्छा हो कि भाजपा चुनावी वायदों को पूरा करने में ध्यान लगाए।
तमाशे खड़ा करना उनका मकसद बन चुका है।

गोपाल अग्रवाल
agarwal.mrt@gmail.com

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh