Menu
blogid : 4631 postid : 874742

श्री मधु लिमए

gopal agarwal
gopal agarwal
  • 109 Posts
  • 56 Comments

ख्याति प्राप्त पार्लियामेन्टेरियन समाजवादी चिन्तक श्री मधु लिमए तरूण अवस्था में ही स्वतन्त्रता आन्दोलन से जुड़ गये थे। 1940 में मात्र 18 वर्ष की आयु में उन्हें अंग्रेजी सरकार ने कैद कर पांच वर्ष तक जेल में रखा। इस कारण फारगूसन कॉलिज पुणे में चल रहे अध्ययन में रूकावट आ गयी। आरम्भ से ही वे समाजवादी विचारधारा से जुड़ गये थे तथा डा. राममनोहर लोहिया, जयप्रकाशनरायन व अन्य समाजवादी नेताओं के साथ कांग्रेस पार्टी के अन्दर कांग्रेस सोशालिस्ट ग्रुप के सदस्य थे। 1948 में सोशलिस्ट पार्टी के कांग्रेस से अलग होने पर इसकी राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य बने। बहुत महत्वपूर्ण संयोग था कि श्री मधुलिमए की शादी श्रीमती चम्पा जी से हुई जो स्वंय प्रो. चम्पा लिमए के नाम से शिक्षा व राजीनीति क्षेत्र में विशिष्ट पहचान रखती थी। प्रो. श्रीमती चम्पा लिमए के पिता क्रान्तकारी, राजनीतिक संत व शिक्षाशास्त्री थे जो महाराष्ट्र में साने गुरूजी के नाम से सरलता से पहचाने जाते थे।
श्री लिमये ने गोवा मुक्ति संघर्ष का नेतृत्व किया तथा 19 माह तक पुर्तगाली सरकार की कैद में रहे। 1964 में वे प्रथम बार तीसरी लोक सभा के लिए निर्वाचित हुए, तथा लगातार चौथी पांचवी व छठवी लोक सभा के सदस्य निर्वाचित होते रहे। चौथी लोक सभा में सोशलिस्ट दल के नेता रहे।
लोक सभा में वे जब भी बोलने खड़े होते उन्हें सभी दल के सदस्य तथा पत्रकार दीर्घा ध्यान से सुनती थी। बाद में लोक सभा सचिवालय ने उनके भाषणों का संकलन प्रकाशित कराया।
राजनीति व विधि में रूचि रखने वालों को संवैधानिक संस्थाओं की कार्यप्रणाली व नियमावली का समुचित व समय परख ज्ञान आवश्यक है। श्री मधु लिमये के इन विषयों पर मौलिक विचार अंधेरे में उजाला करने जैसे हैं।
सदन नियमावली व व्यवस्था के प्रश्नन तो उन्हें धारागत कंठस्थ थे। उनके संदर्भ हमेशा सटीक रहे।
उनकी हिन्दी, अंग्रेजी व मराठी भाषा में 60 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। जो लोग राजनीति पढ़ने स्कूल में नहीं जा पाये वे श्री मधु लिमए की किताबें पढ़ ले, राजनीतिक तत्व जागृत हो जायेगा। जो लोग घोंस घपट साजिश व पैसा कमाने राजनीति में आये है श्री मधु लिमये की किताबें पढ़ लें, दुष्ट विचार मन से निकल जायेंगें।
सन् 1974 के जे.पी. आन्दोलन में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही। 1975 में आपातकाल की घोषणा पर उन्हें मीसा बन्दी बना कर जेल भेज दिया गया जहॉ से फरवरी 1977 में रिहा किए गये। श्री मधु लिमये लोक तन्त्र व संवैधानिक संस्थाओं में गहराई तक विश्वास रखते थे तथा लोकतन्त्र के विरूद्ध कभी नहीं गये। पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने लोक सभा का जब कार्यकाल बढ़ा कर अपनी सरकार का समय भी बढ़ाया था तब उन्होंने विरोध स्वरूप लोक सभा से त्यागपत्र दे दिया। उन्होंने निर्वाचित समय से अधिक लोकसभा में सदस्य बने रहने को अनुचित बताया।
विदेशी मामलों की श्री लिमये को गहरी परख थी। उन्होंने भारत की विदेश नीति की समस्याओं पर पुस्तकें भी लिखी।
श्री मधु लिमये के व्यक्तिव की विशेषता उनका शत प्रतिशत सिद्धान्तिक पक्ष था जिससे उन्होंने कभी भी किसी भी लाभ के लिए समझौता नहीं किया। वे सादगी से रहने वाले नेता थे। आज के समय के नौजवानों के लिए यह विस्मयकारी होगा कि अन्तराष्ट्रीय ख्याति के नेता व चार बार के लोक सभा सदस्य का जीवन खांटी समाजवादी व सुख साधन सुविधाविहिन था। आज के तथाकथित छुटमैये भी जिस रोब व शान से रहते है वह हंकड़ी तो श्री लिमए के व्यक्तिव को छू भी नहीं पाई थी।
1955 में जब आबाड़ी में हुए अधिवेशन में कांग्रेस ने समाजवादी समाज की स्थापना का प्रस्ताव पास किया तो पार्टी में फूट पड़ गयी। अशोक मेहता के नेतृत्व में एक भाग ने इसे कांग्रेस की नजदीकी बताया तो मधु लिमए ने इस नजदीकी का जबरदस्त विरोध किया। बम्बई यूनिट ने श्री मधु लिमए को पार्टी से निष्कासित कर दिया। उस समय डा. राममनोहर लोहिया ने श्री मधु लिमए की बात का समर्थन किया।
1979 में पुन: ऐसी परिस्थितियां बन गयी जब कांग्रेस विरोध में कई दलों को मिलाकर बनी जनता पार्टी में मधु लिमए ने सिद्धान्तिक बिंदु पर निर्णय चाहा। पूर्व जनसंघ के सदस्य राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ से अपनी संम्बद्धता बनाए हुए थे। मधु लिमए ने दोहरी सदस्यता का विषय उठाते हुए मांग रखी कि जनता पार्टी का कोई भी सदस्या किसी अन्य संगठन {आर.एस.एस.} का सदस्य नहीं बनेगा परन्तु जनसंघ के अडियड़ रूख के कारण 19 माह पुरानी मोरारजी सरकार गिर गयी। मधु लिमये को राजनरायन का पूरा समर्थन इस विवाद में मिला। समाजवादीयों ने सिद्ध किया कि सिद्धान्तों के आगे सरकार न्योछावार करना उन्हें आता है। 1977 की सरकार में उन्होंने मंत्री पद लेना स्वीकार नहीं किया था।
गोवा आन्दोलन के मौके पर मधु लिमए के साथ अमानवीय व्यवहार मास्पीट, 1967 में कांग्रेसी कार्यकताओं के हिंसक हमले ने उनके शरीर को बहुत पीड़ा दी थी। उन्हें दमे ने भी जकड़ रखा था। अनेकों बार भाषण करते उन्हें दमे का दौरा पड़ जाता था।
1982 में उन्होंने सक्रिय राजनीतिक से अवकाश लेकर पूर्व की राजनीतिक घटनाओं की विवेचना सम्बंधी लेख लिखे।
8 जनवरी 1995 को दिल्ली में उनका निधन हो गया।
डा. लोहिया की तरह मधु लिमए भी चाहते थे कि मृत्यु के बाद उनकी शरीर को जलाने के लिए लकड़ी बर्बाद न की जाय। उनकी इच्छा स्वरूप उन्हें दिल्ली विद्युत शवदाह ग्रह ले जाया गया उन दिनों दिल्ली में भाजपा के श्री मदन लाल खुराना की सरकार थी। दुर्भाग्य से अन्तयेष्ठि स्थल पर बिजली नहीं थी इस कारण विलम्ब हो रहा था। उस समय उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री मुलायम सिंह यादव की नाराजगी के बाद दिल्ली सरकार हरकत में आयी व बिजली व्यवस्था हुई।
यह संयोग है कि मधु लिमए का जन्म 1 माई को हुआ। यह दिन अन्तराष्ट्रीय स्तर पर श्रमिक दिवस के रूप में मनाया जाता है। उत्तार प्रदेश सरकार का श्रम विभाग इस बार एक मई को लखनऊ में बड़ी श्रमिक रैली का आयोजन कर रहा है जिसमें प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव मुख्य अतिथि हैं।
मेरा सभी समाजवादीयों विशेषतया समाजवादी व्यापार सभा की जिला महानगर शाखाओं से आग्रह है कि एक मई को मधु लिमए जन्म दिवस के दिन समाजवादी सिद्धान्तों पर गोष्ठियां करें।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh