- 109 Posts
- 56 Comments
समाजवादी आन्दोलन की निरन्तरता के संवल की 87वीं जयंती पर विशेष
बद्रीविशाल पित्ती
उन दिनों सोशलिस्ट पार्टी में जबरदस्त तूफान आया हुआ था। एक तरफ डा. राममनोहर लोहिया किसानों व मजदूरों को संगठित कर सरकारी अत्याचारों से संघर्ष कर रहे थे। पूर्वी क्षेत्र मणिपुर से पश्चिम में बम्बई तक धरने प्रदर्शनों का नेतृत्व डा. लोहिया कर रहे थे। परन्तु दो घटनाओं को लेकर पार्टी में अन्दरूनी हलचल भी बढ़ गयी थी।
पहली घटना केरल में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की पटृम थानुपिल्लाई के नेतृत्व में मिली जुली सरकार से सबंधित थी। सरकार की एक घटक “तामिलनाडू ट्रावनकोर नेशनल कांग्रेस पार्टी” राज्य सीमा विवाद पर आन्दोलन कर रही थी। अगस्त 1954 में जलूस के उग्ररूप धारण करने पर पुलिस ने गोली चला दी जिसमें चार व्यक्ति मारे गये। डा. लोहिया उस समय नैनी जेल इलाहाबाद में कैद थे। उन्होंने 12 अगस्त को जेल से ही तार भेज कर पार्टी के महासचिव की हैसियत से मुख्यमंत्री से स्तीफा देने को कह दिया। अपनी ही सरकार से स्तीफा मांगने पर पार्टी में बवाल खड़ा हो गया।
दूसरी घटना 1955 के कांग्रेस के आबाडी अधिवेशन में “समाजवादी ढॉचे के समाज” के निर्माण प्रस्ताव को लेकर सोशलिस्टों में हुई तनातनी की थी। अशोक मेहता कांग्रेस के इस प्रस्ताव को समाजवादीयों से नजदीकी मान कांग्रेस की ओर झुक रहे थे, परन्तु मधु लिमयें ने कड़ा विरोध प्रकट कर दिया। 26 मार्च 1955 को बम्बई ईकाई की कार्यकारणी ने मधुलिमये को निलम्बित कर दिया।
डा. लोहिया इन घटनाओं से आहात थे परन्तु हिम्मत नहीं हारी। हैदराबाद में वर्ष 1955 की समाप्ती व 1956 से प्रारम्भ के मिलन पर एक नई पार्टी “सोशालिस्ट पार्टी” के गठन की घोषणा की। हैदराबाद के सम्मेलन व नई पार्टी के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले 28 वर्षीय युवक का नाम बद्रीविशाल पित्ती था। एक मारवाड़ी औद्योगिक परिवार के सदस्य बद्रीविशाल पित्ती डा. लोहिया के व्यक्तित्व व उनके विचारों से पराकाष्ठा तक प्रभावित हो चुके थे। कई पीढ़ी पहले यह परिवार हैदराबाद में आकर बस गया था तथा वहॉ के उद्योग व्यापार व निजाम की राजनीति का भाग बन गया था। परन्तु, डा. लोहिया से प्रभावित हो बद्रीविशाल पित्ती ने समाजवाद की राह पकड़ ली थी। उन्होंने पारिवारिक परम्पराओं को तोड़ते हुए निजाम के खिलाफ आन्दोलन में हिस्सा भी लिया।
ब्रदीविशाल जी के विषय में चर्चा करते हुए सोशलिस्ट पार्टी के गठन के कारणों के परिदृष्य वाली उपरोक्त दो घटनाओं का उद्धाहरण इस संदर्भ में किया गया कि जुझारू कार्यकत्ताओं तथा संघर्ष शील नेतृत्व से जूझती पार्टी के नवउदय में युवा बद्रीविशाल पित्ती का समर्पित योगदान रहा। बाद में बद्रीविशाल पित्ती डा. लोहिया के जीवनपर्यन्त साथी बने। उनके अन्दर वाणिज्य व राजनीतिक कौशल का अद्भुत संगम था। परन्तु, उन्होंने सिद्धान्तवादी राजनीति की भूमिका को ही ऊपर रखा।
कन्नौज लोकसभा उपचुनाव का उन्होंने सफल संचालन किया। इसी चुनाव में विजय पाकर डा. लोहिया ने भारत की संसद में कदम रखा।
ब्रदीविशाल पित्ती का जन्म हैदराबाद के संम्पन्न व्यापारी परिवार में 28 मार्च 1928 में हुआ। 1951, 1955 व 1960 में विभिन्न आन्दोलनों में वे जेल गये।
विश्व ख्याति के चित्रकार मकवूल फिटा हुसैन डा. लोहिया के दीवाने थे और बद्रीविशाल पित्ती डा. हुसैन की कलाकृति पर फिदा थे। डा. लोहिया की प्रेरणा से मकबूल फिदा हुसैन ने रामायण की घटनाओं की सुन्दर कलात्मक पेन्टिंग श्रृंख्ला बनाई। उस समय हुसैन की साधना का स्थल बद्रीविशाल पित्ती का हैदराबाद अतिथि गृह ही था।
राजनीतिक चित्रकला के साथ बद्रीविशाल पित्ती की साहित्य के प्रति गहरी रूचि थी। वे भारत के समकालीन उत्कृष्ट साहित्यकारों के मित्र रहे तथा अनेकों पुरस्कृत साहित्यक पुस्तकों के प्रकाशन में सहयोग दिया। डा. लोहिया के विचारों व संस्मरणों के मुद्रण, प्रकाशन व प्रचार में उनका योगदान भुलाया नहीं जा सकता। उनके द्वारा “कल्पना” नाम से साहित्य पत्रिका का नियमित प्रकाशन भी किया गया।
डा. राममनोहर लोहिया के देहान्त के बाद बद्रीविशाल पित्ती ने समाजवादी आन्दोलन की प्रगति प्रखर समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में देखी। उन्हें विश्वास था कि भारत के समाजवादी आन्दोलन को मुलायम सिंह यादव ही गति दे सकते हैं। उनकी शुभकामनाएं ही नहीं वरन् मुलायम सिंह यादव व समाजवादी पार्टी को उनका सक्रिय समर्थन मिला।
उनके जीवन का आंकलन करते हुए हम कह सकते है कि सोशलिस्ट पार्टी को उन्होंने माता-पिता की तरह स्नेह दिया। डा. लोहिया के वे सदैव भाई व सखा रहे। भविष्य के समाजवादी आन्दोलन में उनकी निगाह सदैव मुलायम सिंह यादव पर रही। 75 वर्ष की आयु में सन् 6 दिसम्बर 2003 में उन्होंने इस संसार से विदा ली।
गोपाल अग्रवाल
agarwal.mrt@gmail.com
Read Comments