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विदेशी एवं सौतेली पूंजी

gopal agarwal
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सहारनपुर पार्टी नीतियों के प्रचार के दौरान कुछ बुद्धिजीवियों द्वारा विमर्श में विरोध प्रकट किया गया कि भारत में विदेशी पूंजी निवेश पर गतिरोध क्यों है?
मैं पुन स्पष्ट कर दूं कि देश में देशी-विदेशी किसी भी पूंजी के निवेश का स्वागत है परन्तु निवेश कहां हो, यह विचारणीय प्रश्नन है? घर-परिवार में भी धन के आवश्यक या अनावश्यक, हानिकारक या लाभदायक प्रयोग पर चर्चा होती है। जहां न होती हो, करनी चाहिए जिससे बड़ी हो रही सन्तानें आर्थीक अनुशासन की समझ को पैना कर सकें। शराब पर खर्च नहीं करना चाहिए। केवल औहदा बढ़ाने के लिए शस्त्र लेने का कोई औचित्य नहीं है आदि।
राष्ट्र में विदेशी पूंजी को स्थानीय व्यापार में लगाया जायेगा तो बाजार असंगठित क्षेत्र की करोड़ो ईकाईयों {दुकानों} के हाथों से फिसल कर संगठित क्षेत्र में चला जाएगा। एक लाख दुकानदारों को बरोजगार कर बड़े स्टोर में एक हजार नौजवानों को नौकरी मिलेगी। यह समीकरण समाजिक व्यवस्था के लिए घातक व शासक के लिए आत्माघाती बनेगा। असंगठित बाजार को सुनियोजित विस्तार पर ले जाने की नीति दूरगामी विकास के परिणाम देगी जिसका देश में कभी प्रयोग नहीं हुआ। यह विक्रेता-क्रेता, उपभोक्ता- विक्रेता की संयुक्त रणनीति के तहत स्थानीय स्वायतशासी संस्थाओं के माध्यम से बनेगी। यह वस्तुओं के गुण, हानिकारक तत्व सावधानियां या चेतावनियां एवं प्रदर्शनी स्थल के संदर्भो वाली रणनीति होगी जिसमें निर्माता, वितरक, खुदरा विक्रेता व उपभोक्ता की प्रशासकीय संरक्षण में गैरसरकारी संस्था होगी।
विदेशी पूंजी की अंध {ऑधी की तरह} आमद से बेरोजगारी बढने की बात समझ में आने के बाद इसके अच्छे प्रयोग पर भी चर्चा होनी चाहिए। इससे पहले बड़े निर्माण क्षेत्र में विदेशी पूंजी निवेश के अब तक के अनुभवों को भी समझ लेना चाहिए। मान ले एक दवा या अन्या उपभोक्ता उत्पाद कंपनी भारत में सौ भिन्न उत्पादों को निर्माण कर विपणन कर रही है। एक विदेशी कंपनी बड़ी पूंजी के साथ निर्माण खण्ड में आने के लिए आवेदन करती है। उसी समय वह भारत में पहले से कार्यरत उपरोक्त सौ उत्पाद वाली कंपनी से संधिकर संयुक्त निर्माण के लिए करार कर लेती है। परिणाम स्वरूप विदेशी कंपनी उस भारतीय कंपनी को अपने अधीन कर लेती है। बदले में भारतीय कंपनी के पूर्व स्वामी को मुनाफे की एक मुश्त या किश्तवार धनराशि प्रदान करती है। इस स्थिति में कंपनी का लाभांश जो पहले देश के अन्दर ही था, अब विदेश में जाने लगा, रोजगार में कोई वृद्धि नहीं हुई। ऐसा प्रयोग अनेको फार्म्रास्यूटिकल्सा व उपभोक्ता वस्तुएं बनाने वाली कंपनियों के साथ हुआ। पूर्व भारतीय निदेशक केवल नाम के रह गये। उन्हें एक मुश्त मुनाफा भारत से ही प्राप्त लाभांश से मिला परन्तु विदेशी निदेशकों को उत्तरोत्तर लाभ की स्थाई व्यवस्था हो गयी।
तो, विदेशी पूंजी किस खण्ड में लाने की छूट हो? यदि मुनाफे में सम्मलित नही करेंगे तो घाटे के काम के लिए विदेशी क्यों पूंजी लेकर आएगा? यह प्रश्नन काल्पनिक है। यदि पूंजी निवेश को खुली छूट देंगे तो सुगम परिस्थितियों में निवेश होगा यानी सीधा बाजार में निवेश कर कंपनी सुरक्षित लाभांश प्राप्त करेंगी। दुकान खोलना आसान है फैक्ट्री कुछ कठिन उद्यम है। इसलिए सरकार को अनुशासन बनाना पड़ेगा कि देश के बाहर से कोई पूंजी लेकर आए तो सामान्य खण्ड में अनुमति नहीं मिलेगी।उन्हें अविकसित खण्ड की विकासशील योजनाओं में निवेश का अवसर दिया जाएगा अर्थात् मूलभूत ढांचे को विकसित करने के लिए विदेशी धन कुछ नियमों के अन्तर्गत स्वागत योग्य है। एन.आर.आई. अपने सगे संबधियों को स्थानीय व्यापार में विदेशी पूंजी का लाभ अवश्य दे सकते हैं परन्तु निदेशक केवल भारतीय मूल के एन.आर.आई. एवं उनके सगे संबधी ही होंगे।
इसमें भी पूंजीनिवेशक को अच्छा लाभांश मिलेगा। बिना लाभ क्यों कोई आए? ये दीर्घ कालीन योजनांए हैं तथा शासन के संयुक्त तत्वाधान में होनी चाहिए। मानलो कि सड़क बनी तो रिटर्न कौन दे? इन पर अनुसंधान कर रास्ता निकालें। टोल जैसे पुरने दमनकारी व समाज में विभेद पैदा करने वाली युक्तियों का प्रवर्तन रोका जाना चाहिए। टोल शान्तीपूर्ण नागरिकों पर अभद्रता का मानसिक दबाव, दंबगियों का टॉल कर्मियों पर हिसात्मक दबाव तथा टोल से हो रहे अकूत लाभ में नेताओं एवं अधिकारीयों की बंदर बांट करने वाली संस्थाओं में दिनोदिन होती वृद्धि के साथ डीजल-पेट्रोल की राष्ट्रीय क्षति होती है। इसलिए मूलभूत ढांचे के निर्माण में विदेशी पूंजी के रिटर्न को विश्वसनीय बनाने के लिए उस कार्य के लाभार्थी वर्ग को चिन्हित किया जाना चाहिए तथा उस वर्ग पर एक निश्चित राशि का आरोपण होना चाहिए। सड़क के बीच की जा रही कोई भी वसूली अंवाछनीयता को जन्म देगी। इसलिए लाभार्थी पर टैक्स लगे अथवा यात्री चार्जेविल चिप लेकर ऐसे मर्गो से गुजरे जहां मैट्रो के द्वार की तर्ज पर स्थापित यन्त्रों में चिप से वांछित रकम घट जाय। बिना चिप वाला यात्री मार्ग से गुजर तो जायेगा परन्तु कैमरे उसकी गार्ड का नम्बर नोट कर परिवहन विभाग को चालान सूचना प्रेषित कर देंगे। पुल, सड़क बड़े भंडारन के लिए गोदाम, रेल के डब्बे बड़ी मशीननरीयों के निर्माण जैसे खण्डों में विदेशी पूंजी का स्वागत है।
चर्चा में तीसरी पूंजी को भी सम्मलित किया जाना चाहिए जो देशी है परन्तु अवैध है। कालाधन देश में हो या विदेश में अन्त: प्रवाह में तो लाना ही है अन्यथा राष्ट्रीय क्षति है। इसे भी विदेशी पूंजी ओर भवन निर्माण खण्ड में लगाने की छूट एक निश्चित सीमा तक दे दी जाय जिसके पास जितना कालाधन है वह स्वयं इसे विकासशील निर्माण खण्ड में निवेश कर दे। उन पर न अभियोजन होगा और न ही कोई अर्थदंड अर्थात् लगेगा परन्तु निवेश का रिटर्न बहुत सीमित अर्थात् तीन प्रतिशत वार्षिक तक होगा। विदेशी बैंको से कालाधन भी स्वेच्छा से लायें। एक निश्चित तिथि तक घोषणा व उसके तीन वर्ष में सम्पूर्ण राशि निवेश पर उन्हें प्रतिरोधी कवच मिलेगा उसके बाद देश द्रोही जैसे कठोर दंड का प्राविधान होगा।
एक विचार और उठता है कि इतनी किल्लत से तो अघोषित धन को सरकारी बॉन्ड में निवेश करा कर विकासशील योजनाओं में लगायी जाय। यह विचार स्वागत योग्य है परन्तु सरकारी रेट वास्विकता वाले ही हो। मुझे जानकारी मिली की गलियों मे खडंजे डालने जैसे काम पर नगर निगम या निर्माण निगम आदि 125 रूपये फुट से भुगतान कर रहे हैं जबकि यही कार्य घर या निजी फैक्ट्री में कराने पर 40 रूपये फुट में बहुत अच्छी गुणवत्ता का हो जाता है। इसका उपचार आसान है कार्यस्थाली पर रेट का पट्ट प्रदर्शन हो। आते जाते लोग अधिक रेट पढ़ कर तंज कसेंगे तथा वास्तविक रेट की चर्चा भी करेंगे। समस्या का समाधान कार्यस्थाल पर ही हो जायेगा।
चर्चा में अकाट्य सा तर्क भी उछला कि भारत की कंपनियां विदेशों में जाकर व्यापार व निर्माण कार्य करती हैं तो विदेश कंपनीयों भारत में वैसा कार्य क्यों न करें? तर्क ठीक है परन्तु ध्यान से देखो एक तो विदेशों में छोटे से छोटा व्यापार संगठित है। एक शीशी टॉनिक की लेने के लिए नियम घोषित हैं। वहां स्पर्धा उस राष्ट्र के नियमों पर रहते हुए होगी। जो भी कंपनी वहां किसी भी निर्माण या अन्य प्रक्रियाओं में जाती है, वहां के प्रचलित नियमों के अन्तर्गत ही होती है। नियमों में फेरबदल या सुविधा के लिए न तो आवेदन होता है और न ही राजनैतिक घेराबंदी, परन्तु विदेशी जब भारत में पूंजी लेकर आते हैं तो शासक दल में अपने हिमायतीयों को लामबंद कर नियमों में बदलाव की गुहार करते हैं।
पूंजी निवेश ही क्यों, आने जाने, उद्यम करने का अधिकार देश की सीमाओं से वाधित नही करना चाहिए, बशर्त वह देश की अपनी व्यवस्था को हानि न पहुंचाये। यदि कोई नागरिक दूसरे देश की कानून व्यवस्था में कठिनाई पैदा करें तो तुरन्त अवरूद्ध किया जाना चाहिए। परन्तु यह नियम मानवाधिकार पर लागू नहीं होगा।

गोपाल अग्रवाल
agarwal.mrt@gmail.com

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