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तिजारत हमेशा सियासत से चलती है।
कभी बंगाल में ब्रिटिस, डच, फांसीसी, पुर्तगाली व्यापारीयों ने अपना कारोबार फैलाया था परन्तु ब्रिटिस मूल की ईस्ट इंडिया कंपनी ने राजनीति में दखल शुरू करी, उनकी तरकीब कामयाब रही। दिल्ली के बादशाह शाहआलम से 1965 में कंपनी ने बंगाल का दीवानी अधिकार प्राप्त कर लिया।
कंपनी ने इस अधिकार को पाकर सबसे पहले दूसरी विदेशी कंपनीयों को बंगाल छोड़ने को मजबूर कर दिया। ईस्ट इंडिया कंपनी ने राजनीतिक हस्तक्षेप व व्यापार दोनों में फैलाव बढ़ाना आरम्भ कर दिया। मजबूत संगठन क्षमता से उन्होंने व्यापारी ढॉचा व सेना बल तैयार किया। वे दोनों क्षेत्रों में निपुण थे। कभी बंगाल की खाड़ी में समुद्री जहाजों से वे बंगाल मे उतरे धीरे-धीरे तटीय क्षेत्रों मे बढ़ते हुए भारत की सत्ता पर काबिज हुए और राजनीति समझ न रखने वाले भारतीय व्यापारीयों को गुलाम बना लिया।
आज का व्यापारी भी शान्त है। देश में घटनाक्रम तेजी से बदल रहे है। देश में बीस प्रतिशत वाला व्यापारी वर्ग नीतियों से अनभिज्ञ है “जो औरों के साथ होगा सो मेरे साथ होगा” इस कुतर्क पर यथा स्थितवादी की भूमिका में है।
समाजिक रूप से रूढ़ियों व अन्धविश्वासों में जकड़े हुए हैं तथा टोटके, तंत्र-मंत्र से मुनाफा बढ़ाने के सपने देख रहे है उधर यूरेपियन व अमरीकन व्यापारीयों ने अपनी बौद्धिक कुशलता व पूंजी नियोजन की निपुणता से हिन्दुस्तान के उद्योगपतियों पर हाथ रख दिया है तथा उन्हें समझा दिया कि नेताओं को धन उपलब्ध कराने की जगह सीधे उनका चुनाव प्रचार प्रबन्धन संभाल लो। यही कारण है कि विगत लोक सभा चुनाव में आपने देखा होगा कि वस्तु की बिक्री बढ़ाने के लिए प्रचार तथा चुनाव का प्रचार एक ही वेब लैन्थ पर आ गये थे। करिमाई ढंग से वस्तु को ब्रान्ड बनाना व नेता को ब्रान्ड कर प्रस्तुत करना दो समान्तर रणनीति बन गयीं। किसी भी वस्तु के प्रचार में भावनाओं के आधार पर उसे दिनचर्या का अभिन्न अंग बनाया जाता है। इसी प्रकार पूरे चुनाव प्रचार में भावनाओं के थिथले स्तर पर बार-बार कंकड प्रहार किया जा रहा था।
वस्तुत हमारा उद्देश्य यह है कि हम यथास्थिति से ऊब दिखायें तथा वातावरण को अपने पक्ष में करने के लिए सियासती छटपटाहट सार्वजनिक रूप से प्रस्तुत कर दें। व्यापार को बढ़ाने के लिए हमारे पास नीतियां है। उनको आधार बना कर जनता को पैगाम दें।
आप इस प्रक्रिया में लगें, समूह बनांए नीतियों को रेखांकित करें और सियासी हुंकार भर कह दें कि हमें हिन्दुस्तान में अपना व्यापार चाहिए सत्ता में साझीदारी चाहिए। हम बैंकिक से लेकर वस्तु नियन्त्रण कानून बदलना चाहते हैं सारा भारत हमारा है। धर्म संप्रदायों में कदापि नहीं बंटना चाहते। आप पायेंगे तकदीर की रेखायें बनाने वाले आप स्वंय हो गये।
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