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विक्टोरिया पार्क अग्नि कांड
वतन आजाद है। मतलब, अपनी व्यवस्था अपनी जरूरतों के हिसाब से हमें स्वयं बनानी हैं। इसमें बड़े आयोजनों या बड़ी भीड़ वाले स्थानों जैसे स्टेशन, स्टेडियम व सिनेमा आदि पर वैज्ञानिक ढंग से प्रबंध व्यवस्था के प्रगतिशील रेखा चित्र निरंतर बनते रहने चाहिए। अन्यथा, कुतुबमीनार भगदड़, हरिद्वार का संगम, उपहार सिनेमा, विक्टोरिया अग्नि या पटना रामलीला कांड होते रहेंगे। शादी, ब्याह या सम्मेलन आदि पर भोजन परोसने के स्थान की संख्या के अनुपात में लम्बाई कम हो तो अव्यवस्था फैल जाती है। किसी भी स्थान पर आयोजन व आपदा प्रबंध का चाक चौबंध सटीक होना चाहिए।
विक्टोरिया पार्क कांड पर भी पूर्व में जस्टिस गर्ग आयोग ने विभिन्ना बिंदुओं पर जांच व टिपण्णी प्रस्तुत की तथा अब जस्टिस सिन्हा आयोग लगभग उन्ही बिंदुओं पर जांच कर रहे हैं। पूर्व सुनवाई में आरोपीयों का पक्ष न सुनने के कारण सम्भवत: दूसरे आयोग का गठन किया गया है। दोषसिद्धि, हानि आंकलन व मुआवजा आदि उनके संदर्भित बिंदु अवश्य होंगे। नवीनतम वैज्ञानिक सोच समझ के अनुसार व्यवस्था का आदर्श डिजायन उनके संदर्भ बिंदु में है या नहीं, यह मुझे ज्ञात नहीं, परन्तु भविष्य की दुर्घटनाओं को रोकने के लिए इसकी व्याख्या व सार्वजनिक चिंतन से आए उभार की संतुति भी सरकार को होनी चाहिए। इसी चिंतन के अभाव में दुर्घटनाओं की पुनावृत्ति होती है। मेले-तमाशे होते रहेंगे। भीड़ के दबाव को देखते हुए सेफटी वाल्व की संख्या भी तय होनी चाहिए। वैकाल्पिक निकास द्वारों व मार्गों के अस्थाई निर्माण व एम्बुलेंस के बिना आयोजन किया जाना पाप के बराबर हो। यह भविष्य की नीति बननी चाहिए।
मुझे ध्यान है जस्टिस गर्ग आयोग ने इन बिंदुओं पर राय प्रकट की है। यदि सरकारों ने इन्हें संज्ञान में लिया होता तो पटना का रामलीला मैदान हादसा नहीं होता। मैं बहुधा देखता हूं कि स्टेशन पर रेल के प्लेटफार्म बदलने की सूचना आग की भगदड़ जैसी स्थिति पैदा करती है फिर भी प्लेटफार्म खूब बदले जाते है। प्लेटफार्म बदलने की मजबूरी यांत्रिक कारणों से हो सकती है परन्तु इसकी धैर्यपूर्वक सूचना समुचित समय देते हुए की जाय, तो भी कभी कबास चल सकता है। परन्तु, रेलवे वोर्ड तय करे कि आपात को छोड़ प्लेटफार्म न बदला जाये।
जहां आयोजन पंडाल में होने हैं या अस्थाई टीन शेड बनना है वहां पंडाल की ऊंचाई के अनुपात में दो गुना स्थान पंडाल के चारों ओर के घेरे में खाली छोड़ा जाय जो पंडाल गिरने की स्थिति में भीड़ को अस्थाई तौर पर खड़े होने का अवसर दे। इस दशा में सभी लोग निकास की ओर एक साथ भागने से बचेंगे। हर दिशा में निकास अनिवार्य हो तथा निकास द्वार की चौड़ाई चार व्यक्तियों के एक साथ निकलने के कम न हो।
जनता व सरकार दोनों को ध्यान रखना चाहिए कि आयोजन के पैरामीटर में कोई भी छूट विधि विरूद्ध संव्यवहार को बढ़ावा देगी। आयोजन में आने वाले व्यक्ति भी आयोजन सूचना के साथ अनिवार्य रूप से लगे स्थल के मानचित्र में आपदा व्यवस्था को देख कर ही जाने का मन बनाएं। यह धारणा आयोजकों के मन में आपदा प्रबंध को चौकस बनाने के लिए प्रेरित करती रहेगी।
यह बातें निर्धारित आयोजित कार्यक्रमों की हैं जिन पर जरूरी अमल होना है तथा इनका पूर्वानुमान हम कर सकते है। परन्तु, प्राकृतिक आपदा के विषय में आपदा प्रबन्ध गम्भीर तकनीकी व वैज्ञानिक संकेतो पर आधारित होता है। हम भारत सरकार से यह उम्मीद अवश्य करेंगे कि आपदा प्रबन्ध महज एक विभाग व उसके लिए बजट आवंटन तक सीमित न रहे। एक सिद्धान्त भूमंडलीय स्तर पर सत्य है कि “उपचार से बचाव आसान व सस्ता है” इसलिए पूर्व प्रबन्ध पर लापरवाही न हो अन्यथा उसका हर्जाना भारी भरकम मुआवजा राशि के रूप में देना होगा। परन्तु, कोई भी रकम पीड़ित के लिए क्षतिपूर्ति नहीं होती और न ही सांत्वना है क्योंकि परिवार के सदस्य का स्थान कितनी भी बड़ी राशि नहीं ले सकती।
अब तक के सभी दुखद हादसों से पीड़ित परिवारों के प्रति मेरी सहानुभूति तथा गहरी संवेदनाएं हैं तथा आशा करता हूं कि भविष्य में किसी के घर का दीया अनायास ही न बुझे।
गोपाल अग्रवाल
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