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खेती के मूल्य पर उद्योग

gopal agarwal
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cबचपन esमें यह कहानी बहुत सुनी। एक मजदूर की दो बेटियां थी। एक की शादी कुम्हार के यहाँ हुई, दूसरी की किसान के साथ। समय बीत रहा था। मजदूर के मन में बेटियों के हालचाल लेने की जिज्ञासा हुई। वह पहले कुम्हार के घर गया। बेटी की राजी-खुशी पूछी। बेटी ने कहा पिताजी भगवान से प्रार्थना करो कि पानी न बरसे। उसके पति ने मिट्टी के बरतन बनाए थे जो सूखने के लिए बाहर खुले में रखे थे। मजदूर ने पानी न बरसने की प्रार्थना की। अगले दिन वह दूसरी बेटी के घर पहुँचा। उसने कहा पिताजी प्रार्थना करो कि वर्षा हो हमने खेत तैयार कर लिया है। अब पानी की जरूरत है। वर्षा होगी तो अच्छी फसल मिलेगी। मजदूर सोच में पड़ गया, किसके लिए प्रार्थना करे, दोनो ही बेटियां हैं। दोनो का एक समान प्यार का अधिकार है।
बचपन में हमनें यह कहानी के रूप में सुनी-पढ़ी, परन्तु अब सार समझ आ रहा है। औद्योगिकरण विकास की पहचान है। बड़ी भव्य इमारतें, मॉल और फैक्ट्रियों विकास का पैमाना है। जहाँ पहले खेत थे वहाँ पक्की सड़क, बहुमंजिले मकान व दफ्तर खुल गये हैं। दूसरी ओर एक सौ पच्चीस करोड़ व्यक्तियों के पेट को भरने का प्रश्न है। खेती के बिना पेट भर अनाज कहाँ से मिलेगा? आयात किया तो लुढ़कता रूपया औंधे मुँह गिरेगा। इसलिए खेत काट कर बनायी गयी इमारतें व फैक्ट्रीयां राष्ट्र हित में नहीं हैं।
उद्यमी उद्योग के लिए भूमि अधिग्रहण की मांग करता है नतीजन खेत घटता है तो कृषि कमजोर पड़ती है।
इस दुविधा में साम्य बनाना सरकार की नीयत पर निर्भर है अपने को विकासशील कहलाने की ललक में सरकार साम्यता की सीमा को तोड़ सकती है। बताते है कि अब तक 22 लाख हैक्टेयर जमीन कृषि से परिवर्तित हो चुकी है। इसलिए अंधेविकास के विकल्प में योजनाबद्ध विकास किया जा सकता है। कारखाने निम्न तथ्यों को ध्यान मे रखकर खुलवाये जाये
— क्षेत्र में उपलब्ध मानव संसाधन
— क्षेत्र में उपलब्ध कच्चा माल
— बड़ी ईकाई के लिए कल पुtkर्जों की आपूर्ति के लिए क्षेत्र में छोटी ईकाईकयाँ
— उत्पादित माल की समाज में प्राथमिक आवश्यकता अथवा दुर्लभ वस्तु के उत्पादित के लिए जैसे बिजली
— क्षेत्र की कृषि उवर्रकता
देखा गया कि बहुत उपजाऊ भूमि काटकर ऐसे शेड बनवा दिए गये जिनमें उत्पादन गैर जरूरी वस्तु का था। परिणाम स्वरूप औद्योगिक भूखंड रियल स्टेट कारोबार के रूप में एक वस्तु बन गये। कहने को तो जितने भी औद्योगिक भूखंड आवंटित किये जाते है उनके साथ निश्चित अवधि में उत्पादन आरम्भ करने की शर्त होती है परन्तु व्यवहार में अनेकों स्थानों पर भूखंड खाली है तथा प्रिमियम से साथ सैकेन्ड्री सेल में काम आ रहे हैं। यह इसलिए भी होता है कि भूखंड आवंटित करते समय प्रस्तुत प्राजेक्ट रिपोर्ट इस आधार पर नहीं जाँची जाती है कि इसमें वास्तविकता कितनी है।
वर्तमान समय में शहर से दूर बस्तियाँ बनने लगी हैं। दूर सुदूर बड़े बड़े बिल्डर जंगल में मंगल कर रहे हैं। अत: प्रयास हो कि बंजर भूमि को भवनों कारखानों के लिए प्रयोग किया जाये। उपजाऊ भूमि को खेती के लिए आरक्षित रखा जाये।
घटती खेती में प्रचार बहुत बड़ा फैक्टर है। कृषि जमीन कम करने से बदनामी कहीं नहीं होती परन्तु कारखाने लगवाकर सरकार का मुखिया अपने को विकास पुरूष अवश्य कहलवा लेता है।

गोपल अग्रवाल

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