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राजकोषीय घाटे के बढ़ते दबाव से सरकार परेशान है। वह पैट्रोल डीजल के दाम लगातार बढ़ा रही है। रसोई गैस के सब्सिडी सिलेन्डरों की संख्या सीमित कर दी है। वी०पी०एल० में कैश ट्रान्सफर से गरीब परिवार और जोखिम में जायेंगे। आधार कार्ड पर होने वाला खर्च राजकोषीय घाटे को देखते हुए रोका जा सकता था। सिद्धान्त रूप में जब घाटा होता है तब फिजुल खर्च रोक दिए जाते है। पाई-पाई सोच समझ कर खर्च की जाती है। भारत सरकार मितव्यता करती कहीं दिखाई नहीं दे रही है। क्या यह दुर्भाग्यपूर्ण नहीं है कि भारत सरकार ने आई०सी०आई०सी०आई० बैंक सहित बड़ी कम्पनियों को हजारों करोड़ के वेलआउट पैकेज दिए?
देश को गुड गर्वेनेन्स देने का विकल्प हमारे पास है। मेरी अपील है कि भारत का यूथ अर्थशास्त्र को समझना शुरू कर दे। जो अर्थशास्त्र 66 वर्षों में देश को नहीं संवार सका तो वैकल्पिक अर्थव्यवस्था को खोजें व प्रयोग करें। परम्परागत इकोनोमिक्स अब नहीं चलेगी।
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