Menu
blogid : 4631 postid : 40

लोकपाल आये तो भी व्यवस्था में परिवर्तन के बिना भ्रष्टाचार नहीं मिटेगा

gopal agarwal
gopal agarwal
  • 109 Posts
  • 56 Comments

अन्ना एक अच्छे विषय पर आन्दोलन कर रहे हैं। आन्दोलन भी गांधीवादी तरीके से है। परन्तु, इससे कुछ हासिल होने वाला नहीं है। दरअसल भ्रष्टाचारी दीमक से खोखली होती चरमराती व्यवस्था में लोकपाल एक पेच है। इससे टूटता ढांचा टिकाउ नहीं बनेगा। उसके लिए देश को चलाने वालों की सोच बदलनी होगी। इसमें अर्थव्यवस्था की सोच प्रथम कदम है। भारत की अर्थव्यवस्था विदेशी बाजार की पिछलग्गू बन कर सुदृढ नहीं हो सकती। इसके लिए कृषि को बढ़ावा देने वाली नीतियां चाहिए। वे भी बिना बेइमानी के। जैसे सरकार ने कहा कि बैंक कृषि क्षेत्र को ऋण देकर वित्तीय संसाधन सुलभ करायें तो यह ऋण राशि कृषि क्षेत्र में चली गयी, कृषक को नहीं गई। धन कृषि उपकरण या किसानों को उंची ब्याज दर पर कर्जा देने वाले महाजनों को चला गया। इस व्यवस्था की सच्चाई को रिजर्व बैंक से लेकर वित्त मंत्रालय तक जानता है। ऐसे में सरकार की नीयत को साफ रखे बगैर नीति बेकार है। लोकपाल जांच करेगा तो भी सरकारी लाईनों के बीच कृषि क्षेत्र लिखा हुआ है इसलिए कोई कार्यवाही नहीं कर पायेगा। उसे नीयत की गहराई जानने के लिए सरकारी नियमों की सीमाओं का अतिक्रमण करना पड़ेगा जो असम्भव है।

अन्ना हजारे स्वयं सादगी के प्रतीक हैं। परन्तु, राजनीति ओहदे, अकड़ व घौंस का जामा बन गया है। लाल बत्ती राजनीति में मंजिल मानी जाती है। अन्ना जनता को समझावें तो दौर बदल सकता है। राष्ट उन्हें सुनता व देखता है। वे टी०वी० पर सुनायें कि देश में गांधी, आचार्य नरेन्द्र देव, डा० लोहिया, जय प्रकाश नरायन, विनोबा भावे, मधुलिमये, मृणाल गोरे जैसे राजनेता हुए जिनका आचरण संतो जैसा रहा। जो सत्ता की चमक से दूर रहते हुए आम आदमी की तकदीर बदलने के लिए चितिंत रहे।

मैं मेरठ के एक ऐसे महान व्यक्तित्व को जानता हूं जिन्होंने राज्यपाल बनने से इंकार कर दिया था परन्तु सामाजिक समस्याओं से जुडे़ हुए किसी भी बड़े-छोटे आन्दोलन में पहुंचते थे। मैं उनसे मिलने घर गया तो मुझे आश्चर्य हुआ कि वहां बिजली का पंखा तक न था। देश के महान स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों में उनका बड़ा नाम था। जीवन को सादगी पर लौटा लाने को अन्ना युवाओं से अपील करें। लोग उनकी बात जरूर मानेंगे। सभी तरह के भ्रष्टाचारों की प्रेरणा का स्त्रोत चमक दमक की जिन्दगी ही है।

श्री अन्ना हजारे जी देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्व० राजीव गांधी के उस वाक्य का वास्तविक अर्थ जनता को बताऐं जिसमें उन्होंने कहा कि एक रूपये की इमदाद देने पर गांव तक वामुश्किल दस पैसे पहुंच पाते हैं! गौर करने की बात यह है कि यहां से एक बहुत बड़ा व्यापार शुरू हो गया। संदेश गया कि देश की नौकरशाही भ्रष्टाचारी है अत: खैरात बांटने का काम निजी संस्थाओं (N.G.O.) ने संभाल लिया। सरकार को तो राजीव गांधी की बात बड़ी करनी थी सेा निजी संगठनों को धन आवंटन की गंगा बहा दी। अन्ना साहब इसी मुद्दे को उठा लें। देश के नौकरशाहों की पत्नियां एंव परिवार के लोग या वे स्वयं सेवानिवृत्त होने के बाद जनता को खैरातिया ढंग से सहायता पहुंचाने जो कार्य कर रहे हैं उसका सटीक आंकलन करा लिया जाये। इस देशी-विदेशी एवं सरकारी धन के कितने पैसे लाभार्थी को मिल रहे हैं? यह सम्भवत: दस पैसे से भी कम गणित है। हां, बिना करे-धरे कईयों (N.G.O.) की वेल खूब फल-फूल रही है। ऐसा हजारों करोड़ देश का बचाकर मूलभूत ढांचे में डाला जा सकता है। देश अपने आप खड़ा हो जायेगा।

मैं आदरणीय अन्ना जी से एक अति विनम्र निवेदन और करूंगा। सरकार उनके दबाव में है। लोकपाल बनाने की बात सरकार माने या न माने परन्तु एक बात जरूर मान लेगी। अन्ना सरकार से महज एक सवाल करें कि देश की आम जनता द्वारा खरीदी जाने वाली दवा पर सरकार ने कितने मुनाफे की छूट दे रखी है। जवाब आयेगा तो लोगों के पसीने छूट जायेंगे। कहेंगे “हाय राम जिसे हम दस रूपये की खरीद रहे हैं वह तो एक रूपये का माल भी नहीं है।

ये लोकपाल से बड़े सवाल हैं जो सरकार की नीतियों से जुड़े हुए हैं। लोकपाल तन्त्र कितना भी मजबूत बने किसी भी दशा में देश के कानून के दायरे से बाहर नहीं हो सकता। वह सुप्रीम कोर्ट से बड़ा नहीं हो सकता। देश में एक क्या सौ लोकपाल भी बैठा लें तो वह कुछ नही हो सकता जो सरकार की निीत बदलने को मजबूर करने से हो सकता है “यही गांधी है” गांधी भी नेहरू से नीति बदलने की चाह रखते थे। डा० लोहिया ने समूचे देश को इसी के लिए आन्दोलित किया। जय प्रकाश नरायन ने भी ललकारा था कि नीति बदलो नहीं तो सरकार बदलेंगे। नीति देश व जनता के हित में होगी तो नौकरशाही अंकुश में आ ही जायेगी। डकैती के रूपये कोई सड़क पर लुटाने लगे तो जनता डकैतों को पकड़ने के बजाय लूटने में लग जायेगी।

यही धर्म देश में चल रहा है। चुनाव में जनता उम्मीदवार के गुण को देखने के बजाय तत्कालिक लाभ को देख रही है। केन्द्रीय सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों का जीवन घोटालों से जुड़ा हुआ है। पूर्व में सकारात्मक संदेश यह था कि जंतर-मंतर पर देश अन्ना से सीधा जुड़ गया। परन्तु, जब अन्ना ने विकल्प के रूप में भाजपा की तरफ इशारा किया तो लोग उखड़ गये। आसमान से गिरे तो खजूर में अटके या खाई से निकले तो कुंए में गिरे। लोग और नहीं गिरना चाहते। उन्हें मात्र दल परिवर्तन नही चाहिए। उन्हें व्यवस्था परिवर्तन चाहिए, नीति में परिवर्तन व नीयत में ईमानदारी चाहिए। ऐसे में लोकतन्त्र के हिमायती स्वयं लोकपाल कहलायेंगे। मैं आशा करता हूं कि अन्ना इस तरफ अवश्य ही ध्यान देंगे।

 

गोपाल अग्रवाल

 

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply to dineshaastikCancel reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh