Menu
blogid : 4631 postid : 26

व्यापारी को मिटाने की साजिश

gopal agarwal
gopal agarwal
  • 109 Posts
  • 56 Comments

एक जमाना था, जब वितरण व्यवस्था का मुखिया कहा जाने वाला व्यापारी, वाणिज्यक संस्थाओं व उद्योगों को बढ़ाने के लिए धन निवेश करता और गर्व से अपने विचारों को लोकतन्त्र प्रणाली के तहत रखता। परन्तु प्रदेश की बसपा सरकार के लूट तंत्र ने छाती-चौड़ी कर चलने वाले व्यापारी को घूंघट की ओट में चलने को विवश कर दिया है। इस तन्त्र को सुविधाजनक बनाने के लिए केन्द्र की कांग्रेस सरकार पूरा साथ दे रही है।
दरअसल दोनो का लक्ष्य पृथक होते हुए भी कार्य प्रणाली एक है। बसपा को धन चाहिए और कांग्रेस विदेशी पूंजीपतियों को भारत में एक छत्र व्यापार का मार्ग प्रदान करना चाहती है। आने वाली विदेशी पूंजी स्वदेशी पूंजीपति को पायदान बना कर भारत के उपभोक्ता की चौखट तक पहुँचना चाहती है। वहां वह सब कुछ बेचा जायेगा जिसकी जरूरत न भी हो। इरादा उसके घर की करैन्सी खाली करना है। कुछ उधार दिया जा सकता है जिससे वह कम्पनी का कर्जदार भी बन जाय। यह तभी सम्भव है जब व्यापारी का आस्तित्व समाप्त हो, जिसके लिए केन्द्र सरकार एक बाद एक बेतुके कानून बनाए जा रही है। प्रदेश की सरकार को यह बहुत सुहा रहा है क्योंकि इनका अनुपालन प्रदेश सरकार के हाथ है। इन कानूनों की मार्फत तब तक वसूली चलेगी जब तक व्यापारी मरणासन्न न हो जाए।
कांग्रेस व भाजपा के संयुक्त उपक्रम वायदा व्यापार से समूचे प्रदेश के व्यापारी लूटे जा रहे है। इस एमसीएक्स के वॉक्स से न जाने कितने लाख व्यापारियों के चूल्हे बुझ गये।
कुछ ताजा उदाहरणों पर गौर करें तो उपरोक्त बातें अतिश्योक्ति न होकर वास्तविकतायें नजर आयेंगी। मिलावट की सजा आजीवन कारावास तक बढा दी गयी है। यह ककड़ी की चोरी पर कटारी से वार है। कल्पना करें कि ट्रेफिक लाइट पर कोई वाहन परवाह किए बगैर लाल बत्ती पार कर जाये तो पकड़े जाने में पचास रूपये देकर आगे बढ़ जायेगा। परन्तु कानून बन जाये कि इस अपराध पर अर्थदण्ड एक लाख रूपया होगा तो चौराहे का कांस्टेबिल जबरदस्ती आते जाते वाहनों पर रैड लाइट जम्प का आरोप लगायेगा और दस हजार की रिश्वत मांगेगा। कुछ ऐसा ही अब खाद्य पदार्थ बेचने वालो के साथ होगा। अपराध हो रहा है या नही, यह प्रश्न नहीं है। प्रत्येक दुकानदार भय मात्र से दी जा रही 500 या 1000 के महीना/सलाना के स्थान पर दस बीस हजार की रिश्वत देने को मजबूर होगा। इस उगाही का मिलावट से कोई सरोकार नहीं है। मिलावट को रोकने के लिए बने कानून में भ्रष्टाचार की मिलावट से हलवाई, बेकरी से लेकर देहात के परचून तक तबाह हो जायेंगे। ध्यान रहे, कोई भी सभ्य नागरिक मिलावट का सख्त विरोधी होगा परन्तु लक्ष्य अपराधी को पकड़ने का रहने चाहिए। हंटर दिखाकर हर किसी से नाच कराना स्वयं में अपराध है। आश्चर्य है कि अभी तक मिलावट जांचने की समुचित प्रयोशालायें ही नहीं बनी हैं।
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लिए दवा बहुत मुनाफे का सौदा है। उनको और अधिक लाभ पहुंचाने के लिए दवाओं की एक नई सूची “एच-एक्स” बनाई गयी है जिसमें प्रचलित एन्टीबायोटिक्स रखे गए है। इस अनुसूची की दवाओं को बेचने के लिए नारकोटिक की तर्ज पर दवा विक्रेता को रिकार्ड रखना होगा अर्थात डाक्टर का पर्चा दो प्रतियों में होगा जिसमें एक उपभोक्ता के पास रहेगा और एक दवा विक्रेता के रिकार्ड में रखा जायेगा। एक पृथक रजिस्टर पर मरीज का नाम, खुराक व दवा की दी गयी मात्रा लिखी जायेगी। सभी जानते हैं कि यह अव्यावहारिक है। न तो डाक्टर दो प्रति में पर्चा देगा न मरीज रजिस्टर भरने तक रूकने का सब्र करेगा। परन्तु नर्सिंग होम को इस नियन्त्रण से मुक्त रखा गया है। इसी से कांग्रेस की छिपी हुई मंशा उजागर होती है। दरअसल अब कम्पनियाँ सीधे कारपोरेट हास्पिटल व नर्सिंग होम को दवा बेचेगी जिससे थोक व खुदरा का मुनाफा भी कम्पनी को बच जायेगा।
इसके साथ यह उपबन्ध भी लगा दिया गया है कि एम.बी.बी.एस. से कम कोई डाक्टर एन्टीबायोटिक का पर्चा नहीं लिख सकेगा। यानी देहात के लोगों को साधारण मियादी बुखार व प्रसव के लिए भी शहर के नर्सिंग होम आना मजबूरी होगी। खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश सबसे पैना औजार है जिससे गली के विसायती से लेकर मंडी तक के व्यापारी प्रभावित होंगे। “वालमार्ट” जैसे बड़े विदेशी स्टोर अपने राष्ट्र का कचरा व स्थानीय मिलों से उठाये गये माल को सीधे स्टोर में बेचेंगे। अभी यह माल सस्ता दिखेगा, बाद में बाजार से दुकानें सिमट जाने पर वही माल इनसे मंहगा खरीदना उपभोक्ता की मजबूरी होगी।
वैट में ई-रिटर्न व्यापारी के लिए नासूर वन गया है। वैट रिटर्न स्वयं में जटिल लिपिकीय कार्य है जिसके लिए व्यापारी को अतिरिक्त स्टाफ रखना पड़ रहा है। प्रति माह नेट पर रिटर्न दाखिल करने से 500 रूपये का खर्च ऊपर से हो जाता है।
कुल मिलाकर व्यापारी त्रस्त है। बसपा-कांग्रेस की जुगलबन्दी से चकराये व्यापारी के पास अब व्यापार बन्द करने या विकल्प के रूप में समाजवादी पार्टी की सरकार को लाना ही रह गया है।
गोपाल अग्रवाल

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh