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वकील साहब मुझे डराते हैं

gopal agarwal
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मेरे कार्यालय के बाहर से मोटर साईकिल चोरी हो गयी। मौखिक बहस के बाद दूसरे दिन एफ०आई०आर० दर्ज हुई। हार्ड कॉपी की प्रतिलिपि के लिए मुंशीजी को दो सौ की फीस न देने के कारण तीन दिन मामला लटका रहा। एक सप्ताह बाद विवचेना अधिकारी का खड़ी भाषा वाला फोन आया “क्या इंश्योरेंस से क्लेम लेना है।” “वो तो लेना पड़ेगा या तो वाहन मिले वर्ना क्लेम” हमने फोन पर यह उत्तर दिया। उसके जवाब में हमें व्यक्तिगत रूप से मिलने का हुक्म दरोगा जी ने दिया। मिलने का स्थान व समय विस्मयकारी था। सुबह 8 से पहले या रात 8 के बाद, चौकी या थाने पर न बुलाकर अन्यत्र मिलने को कहा।
चर्चा के दौरान अपने वकील मित्र से मैंने यह जानने का प्रयास किया कि वाहन चोरी के मामले में कोई दस्तावेज थाने को सौंपने होंगे और यदि हां तो उन्हे पंजीकृत डाक से भेजा जा सकता है? धीरे से वकील साहब समझाते हैं “मिलने में कोई हर्जा नही है यदि चोरी संदिग्ध लिख दी तो क्लेम नहीं मिलेगा” में समझ नही सका। यदि चोरी की घटना में शंका है तो मुझे अभियुक्त बना कर मुकदमा चलाना चाहिए। मैं इसके लिए तैयार हूँ। मुझे लगता है तंत्र वाकई सड़ गल गया है। जो व्यवस्था रोब दे रही है या डरा रही वह जरूर बदली जानी चाहिए।
गोपाल अग्रवाल

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