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क्यों डरते हो उठो और आगे बढ़ो

gopal agarwal
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“यूं तो है बहुत छोटी छोटी बातें परन्तु बदन में शूल चुभने की तरह गहरी पीड़ा देती हैं। थाने में मोबाईल या कागजात चोरी की सूचना पर ठप्पा लगवाने के सौ रूपये, एफ०आई०आर० दर्ज कराने के दो सौ रूपये, कार चोरी की रिपोर्ट पांच सौ रूपये व फाइनल रिपोर्ट लगाने को क्लेम मूल्य के अनुसार धन देना अनिवार्य हो गया है। अब उच्च अधिकारियों एवं राजनीतिक व्यवस्था को सोचना है कि संरक्षण व्यवस्था की सड़न से चिपके इन लुटेरों को देना है या फिर जनता को जिसकी सेवा की शपथ लेकर अधिकारी को वर्दी व नेता को विधायिका मिली है।
अधिकारी तैनाती पर आते है और चले जाते है, कुछ दिनों में, कुछ महीनों में अथवा एक दो साल में परन्तु ऐसा क्या होता है कि जहाँ एक बार तैनाती हुई वहां व्यापार में स्थाई भागीदारी हो जाती है। कुछ अपवाद रहे होंगे। मीडिया के सामने अपने को दबंग सिद्ध करने वाला अधिकारी सत्ता पक्ष के दलालों व गुंडों के आगे मिमयाता है, तभी तो अपराधी वेखौफ हैं।
कहीं लूट या चोरी हो जाती तो विवचेना अधिकारी लुटे हुए व्यक्ति से ही अपराधियों के ठिकाने ढूंढने के लिए कहता, दबिश के लिए उन्हीं से वाहन मंगाता और रास्ते में बराती की तरह खाता-पीता चलता है।
जनता करबट बदल रही है, धरती हिल रही है। जब जनता आगे बढेगी तो सिंहसान तिनकों की तरह आंधी में उड़ेगा। इसीलिए, हे उच्च अधिकारियों, कल दूसरी सरकार होगी तुम्हे अपनी आस्था बदलनी पड़ेगी। इसीलिए, हमारा आग्रह है कि बार-बार आस्था बदलने से अच्छा है जनता के प्रति अपने उत्तरादायित्व को निभायें। “जन” स्थाई है और वही राष्ट्र का वास्तविक स्वामी है।
गोपाल अग्रवाल

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