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भारत की अर्थव्यवस्था का आधार कृषि एवं कुटीर उद्योग हैं। समस्त उत्पादों की वितरण व्यवस्था व्यापारियों ने संभाली हुई है जिनसे देश के बीस करोड से अधिक लोगों का भरण पोषण होता है। आर्थिक विकास में कल-कारखानों में उत्पादित वस्तुओं का भी प्रमुख अंशदान है, परन्तु ये उत्पाद भी वितरक- थोक विक्रेता व खुदरा विक्रेता की श्रृंखला के माध्यम से उपभोक्ता तक पहुँचते हैं। इसी श्रृंखला से देश की चरमराती हुई अर्थव्यवस्था को जीवनदायी संबल प्राप्त है। परन्तु, भारत सरकार विदेशी पूंजी को सीधे खुदरा बाजार में उतारकर भारत की अर्थव्यवस्था को चौपट कर देना चाहती है।
विदेशी पूंजीपति स्वदेशी पूंजीपति को पायदान बनाकर भारत के उपभोक्ता की चौखट तक पहुँचना चाहते हैं। वहां वह सब कुछ बेचा जायेगा जिसकी जरूरत न भी हो। इरादा उसके घर की करैन्सी को खाली करना है। कुछ उधार भी किया जा सकता है, जिससे वह कम्पनी का कर्जदार भी बन जाय। यह तभी सम्भव है जब व्यापारियों का आस्तित्व समाप्त हो जिसके लिए केन्द्र सरकार के एक के बाद एक बेतुके कानून बनाए जा रही है।
हमें खतरा साफ दिखाई दे रहा है कि “वालमार्ट” जैसी बहुराष्ट्रीय प्रतिष्ठानों को भारत में खुदरा व्यापार की अनुमति स्थानीय बाजार के लिए घातक कदम होगा। समाजवादी व्यापार सभा भारतीय व्यापारियों विशेषकर छोटे थोक व खुदरा व्यापारियों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं तथा हम आपसे आग्रह करते हैं कि खुदरा बाजार में विदेशी निवेश की अनुति को रद्द किया जाये।
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