gopal agarwal
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डा० लोहिया के सिद्धान्तों को मानने वाले अगिनित संख्या में हैं परन्तु सभी एक मंच पर आकर मजबूत लोकतान्त्रिक समाजवादी संगठन के लिए तैयार नहीं है।
कुछ नहीं तो व्यवस्था पर बहस छेड़ी जा सकती है इससे व्यवस्था परिवर्तन के चमत्कारिक व्यवहारिक प्रारूप मिलेंगें।
अमर शहीद भगत सिंह के गाने गाते रहने से कुछ नहीं होगा उनकी फिलॉसपी समझ लो, देश का ढर्रा बदल जायेगा।
श्री राजकिशोर ने सही शब्द का प्रयोग किया “डा० लोहिया की विधवाऐं” जो केवल विलाप करती हैं, अनुसरण नहीं करतीं। यदि कुछ मुद्दों पर सहमत होकर लोहियावादी एकजुट हो जायें, तो सत्ता की निरकुंशता रोकी जा सकती है।
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